कई देशों में विधायिका के सदस्यों को विधायिका की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने और शक्तियों के पृथक्करण को संरक्षित करने के साधन के रूप में कार्यपालिका के तहत लाभ के पद को स्वीकार करने से मना किया जाता है।
- लाभ के पद कानून, विधायिका और कार्यपालिका के बीच शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत को लागू करने की कोशिश करता है
- अंग्रेज़ी के निपटान अधिनियम 1701 और यूनियन 1707 का अधिनियम इस सिद्धांत का एक प्रारंभिक उदाहरण है।
- राजा के अधीन किसी कार्यालय या मुनाफे का कोई भी व्यक्ति नहीं है, या क्राउन से पेंशन प्राप्त करता है, वह हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य के रूप में सेवा करने में सक्षम होगा।
- संविधान, संसद/विधायिका को लाभ के किसी भी पद को धारण करने वाले को छूट प्रदान करने हेतु कानून पारित करने की अनुमति प्रदान करता है।
- अगर कोई सांसद/विधायक किसी लाभ के पद पर आसीन पाया जाता है तो संसद या संबंधित विधानसभा में उसकी सदस्यता को अयोग्य करार दिया जा सकता है।
“लाभ के पद” यानि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट को लेकर यह है नियम...
भारत में संसद (अयोग्यता निवारण) अधिनियम, 1950, 1951 और 1953 में कुछ पदों को मुनाफे के कार्यालय के रूप में दर्ज किए जाने से छूट मिली।
- भारत के संविधान में अनुच्छेद 102(1)(a) तथा अनुच्छेद 191(1)(a) में लाभ के पद का उल्लेख किया गया है, किंतु लाभ के पद को परिभाषित नहीं किया गया है।
- अनुच्छेद 102(1)(a) के अंतर्गत संसद सदस्यों के लिये तथा अनुच्छेद 191(1)(a) के तहत राज्य विधानसभा के सदस्यों के लिये ऐसे किसी अन्य पद पर को धारण करने की मनाही है जहाँ वेतन, भत्ते या अन्य दूसरी तरह के सरकारी लाभ मिलते हों।
- जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (ए) में भी सांसदों व विधायकों को लाभ का पद धारण करने की मनाही है।
- संसद (अयोग्यता निवारण) अधिनियम, 1959 की धारा 3 के आधार पर, कुछ कार्यालयों ने अपने धारकों को संसद के सदस्य होने से अयोग्य घोषित नहीं किया।
निम्नलिखित प्रावधान सांसदों एवं विधायकों को लाभ के पद से छूट प्रदान करते हैं
- किसी भी सांसद या विधायक के मंत्री पद को भारत सरकार या किसी भी राज्य की सरकार के तहत लाभ का पद नहीं माना जाएगा।
- संविधान के अनुच्छेद, 102 और 191 भी किसी सांसद या विधायक को सरकारी पद को ग्रहण करने की अनुमति देते हैं।
- पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान आदि ने कानून बनाकर संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से बाहर रखने के लिये कानून का निर्माण किया है।
- संसदीय सचिव विधानमंडल का एक सदस्य होता है, जो अपने कार्यों द्वारा अपने से वरिष्ठ मंत्रियों की सहायता करता है।
- अनुच्छेद 239AA(4) के तहत संसदीय सचिव मंत्री नहीं माने जाते हैं, क्योंकि उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा नहीं की जाती है, किंतु इन्हें मंत्री जैसी ही सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।
- अनुच्छेद 164 (1 ए) निर्दिष्ट करता है कि मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या के 15% से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 की भावना का उल्लंघन करने के साथ–साथ संविधान में उल्लेखित विधायिका और कार्यपालिका के बीच शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत का भी उल्लंघन करता है।
- संसदीय सचिवों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 164 (1 ए) का भी उल्लंघन है।
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