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भगवान बिरसा मुंडा (Birsa Munda) की गौरव गाथा |
आदिवासी जनचेतना के लोकनायक भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 15 नवंबर से 20 नवंबर तक लखनऊ के गोमती नगर स्थित संगीत नाटक अकादमी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय जनजातीय भागीदारी उत्सव का शुभारंभ किया। इस भव्य महोत्सव में भारत के 22 राज्यों के साथ-साथ वियतनाम और स्लोवाकिया से भी जनजातीय कलाकार भाग ले रहे हैं।
- आदिवासी जनचेतना के लोकनायक भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर 150 रुपये का स्मारक सिक्का जारी करेगी। यह सिक्का शुद्ध चांदी का होगा और इसका वजन 40 ग्राम होगा।
- अंग्रेजों के विरुद्ध जनजातीय विद्रोह उलगुलान का नेतृत्व कर जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ने वाले आदिवासी जन चेतना के लोकनायक और भगवान बिरसा मुंडा के शौर्य और बलिदान की स्मृतियां स्मारक सिक्कों के माध्यम से भी सहेजी जाएंगी।
- बिरसा मुंडा जयंती, जिसे जनजातीय गौरव दिवस के नाम से भी जाना जाता है, हर साल 15 नवंबर को मनाई जाती है।
- थारू, कोल, चेरु, गोंड, बुक्सा जैसी जनजातियों को सशक्त करने के लिए सैचुरेशन योजनाओं के तहत हर जरूरतमंद को सरकारी लाभ पहुंचाने का अभियान जारी है।
बिरसा मुंडा, एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक थे। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए।
- पृथ्वी पिता यानी ‘धरती आबा’ बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 के दशक में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुगना पुर्ती (मुंडा) और माता का नाम करमी पुर्ती (मुंडा) था।
- साल्गा गाँव में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा (गोस्नर इवेंजेलिकल लुथरन चर्च) विद्यालय में पढ़ाई करने चले गए।
- बिरसा मुंडा को उनके पिता ने मिशनरी स्कूल में यह सोचकर भर्ती किया था कि वहाँ अच्छी पढ़ाई होगी।
- 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों ने कुटिल नीति अपनाकर आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करने लगे।
- 1895 में अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ दी। यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था।
- बिरसा मुंडा केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक सुधारक भी थे। उन्होंने जनजातीय समाज से कुप्रथाओं, अंधविश्वासों और नशे की आदतों को हटाने के लिए काम किया। अपने अनुयायियों को एकता, शिक्षा और सत्यनिष्ठा का संदेश दिया। उन्होंने “बिरसाईट” नामक धार्मिक आंदोलन की शुरुआत की, जो सरल और नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
- आदिवासी हैजा, चेचक, साँप के काटने, बाघ के खाए जाने को ईश्वर की मर्जी मानते, लेकिन बिरसा उन्हें सिखाते कि चेचक-हैजा से कैसे लड़ा जाता है।
- 9 जून 1900 को 25 वर्ष की आयु में रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई, जहां उन्हें कैद किया गया था।
- आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता है।
- 10 नवंबर 2021 को भारत सरकार ने 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा की जयंती को ''जनजातीय गौरव दिवस'' के रूप में मनाने की घोषणा की।
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